भाइयो !
मिलकर मनाओ ईद
दिल में ना रह जाए
कसक औ' फिकर ।
ग़र ग़रीबी में
दबा हो कोई बन्दा
बाँट फ़ितरा दिखा
उसको भी जिगर ।
पर ना जिंदा
जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे
कर परिन्दे - बेफ़िकर ।
दर और दरिया
मान सबका
मौहब्बत का —
सब बराबर, सब बराबर ।
ज़र और जोरू
है सलामत
ख़ुद की व औरों की
रख पाक अपनी भी नज़र ।
सरहद हिंद पर
मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को
नेस्तनाबुद ओ' सिफर ।
सोमवार, 23 नवंबर 2009
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
सोमवार, 16 नवंबर 2009
शेरो-शायिरी
ऊपर से नीचे तक करीने से सजे थे आप तो।
फ़िर बेलबूटेदार कपड़ों से सजाया क्यों बदन।
जब हो चुकी थी जिस्म पर कारीगरी, ओ आफताब!
फ़िर क्यों ज़री के काम को देने आमादा हो ख़िताब।
जब हजारों बार बिंधे अरमान।
तेरी सजावट का बना सामान।
एक से बढ़ एक आगे होड़ करती है ज़री।
पहले खुदा फ़िर बाद उसके आदमी कारीगरी।
किस तरफ़ से की शुरू नक्काश ने कारीगरी।
जर्रे-जर्रे पे बनाया फूल भी मलयागिरी।
देख तुमको लोचनों ने है ज़री का काम सीखा।
और तब से ही तुम्हारे अक्स के नक्काश हैं ये।
[गृहशोभा पत्रिका के लिए जबरन लिखे गए उर्दू-हिंदी भाषा के शेर]
फ़िर बेलबूटेदार कपड़ों से सजाया क्यों बदन।
जब हो चुकी थी जिस्म पर कारीगरी, ओ आफताब!
फ़िर क्यों ज़री के काम को देने आमादा हो ख़िताब।
जब हजारों बार बिंधे अरमान।
तेरी सजावट का बना सामान।
एक से बढ़ एक आगे होड़ करती है ज़री।
पहले खुदा फ़िर बाद उसके आदमी कारीगरी।
किस तरफ़ से की शुरू नक्काश ने कारीगरी।
जर्रे-जर्रे पे बनाया फूल भी मलयागिरी।
देख तुमको लोचनों ने है ज़री का काम सीखा।
और तब से ही तुम्हारे अक्स के नक्काश हैं ये।
[गृहशोभा पत्रिका के लिए जबरन लिखे गए उर्दू-हिंदी भाषा के शेर]
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