भाइयो !
मिलकर मनाओ ईद
दिल में ना रह जाए
कसक औ' फिकर ।
ग़र ग़रीबी में
दबा हो कोई बन्दा
बाँट फ़ितरा दिखा
उसको भी जिगर ।
पर ना जिंदा
जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे
कर परिन्दे - बेफ़िकर ।
दर और दरिया
मान सबका
मौहब्बत का —
सब बराबर, सब बराबर ।
ज़र और जोरू
है सलामत
ख़ुद की व औरों की
रख पाक अपनी भी नज़र ।
सरहद हिंद पर
मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को
नेस्तनाबुद ओ' सिफर ।
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