सोमवार, 23 नवंबर 2009

ईद-उल-फितर

भाइयो !
मिलकर मनाओ ईद
दिल में ना रह जाए

कसक औ' फिकर ।

ग़र ग़रीबी में

दबा हो कोई बन्दा
बाँट फ़ितरा
दिखा
उसको भी जिगर ।

पर ना जिंदा

जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे

कर परिन्दे - बेफ़िकर ।

दर और दरिया

मान सबका
मौहब्बत का —

सब बराबर, सब बराबर ।

ज़र और जोरू

है सलामत
ख़ुद की व औरों की
रख पाक अपनी भी नज़र ।

सरहद हिंद पर

मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को

नेस्तनाबुद ओ' सिफर ।

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