लाहोर का इकरार
______ज़ज्बे ख़्वार
________ फ़रमा हो गया
जबकि बैठे रहनुमा दो मुल्क के
_____________ हो रू-ब-रू।
चैनो अमन पैगाम
______जश्ने आम
_________ तस्सवुर हो गया
तिसपे फौजें आ डटी दो मुल्क की
______________हो दू-ब-दू।
मुआफिकत-अ-रमज़ान
______ लफ्ज़-अ-अज़ान
_________ ज़िहाद हो गया
इबादत इतल्ला का ढंग, एलाने-जंग
__________ एक से थे हू-ब-हू ।
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
खुदा-ना-खास्ता
शहादत की अकीदत
अंजुमन में अदब से करना
लगे ना जश्ने-कुर्बानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।
अदावत की फज़ीहत
सरहदों पर जिगर से करना
लगे ना हुक्म फ़रमानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।
रफाकत की नसीहत
हिंद मकतब में तलब करना
लगे ना ज़ोर ज़िस्मानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।
अंजुमन में अदब से करना
लगे ना जश्ने-कुर्बानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।
अदावत की फज़ीहत
सरहदों पर जिगर से करना
लगे ना हुक्म फ़रमानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।
रफाकत की नसीहत
हिंद मकतब में तलब करना
लगे ना ज़ोर ज़िस्मानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।
सोमवार, 23 नवंबर 2009
ईद-उल-फितर
भाइयो !
मिलकर मनाओ ईद
दिल में ना रह जाए
कसक औ' फिकर ।
ग़र ग़रीबी में
दबा हो कोई बन्दा
बाँट फ़ितरा दिखा
उसको भी जिगर ।
पर ना जिंदा
जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे
कर परिन्दे - बेफ़िकर ।
दर और दरिया
मान सबका
मौहब्बत का —
सब बराबर, सब बराबर ।
ज़र और जोरू
है सलामत
ख़ुद की व औरों की
रख पाक अपनी भी नज़र ।
सरहद हिंद पर
मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को
नेस्तनाबुद ओ' सिफर ।
मिलकर मनाओ ईद
दिल में ना रह जाए
कसक औ' फिकर ।
ग़र ग़रीबी में
दबा हो कोई बन्दा
बाँट फ़ितरा दिखा
उसको भी जिगर ।
पर ना जिंदा
जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे
कर परिन्दे - बेफ़िकर ।
दर और दरिया
मान सबका
मौहब्बत का —
सब बराबर, सब बराबर ।
ज़र और जोरू
है सलामत
ख़ुद की व औरों की
रख पाक अपनी भी नज़र ।
सरहद हिंद पर
मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को
नेस्तनाबुद ओ' सिफर ।
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
सोमवार, 16 नवंबर 2009
शेरो-शायिरी
ऊपर से नीचे तक करीने से सजे थे आप तो।
फ़िर बेलबूटेदार कपड़ों से सजाया क्यों बदन।
जब हो चुकी थी जिस्म पर कारीगरी, ओ आफताब!
फ़िर क्यों ज़री के काम को देने आमादा हो ख़िताब।
जब हजारों बार बिंधे अरमान।
तेरी सजावट का बना सामान।
एक से बढ़ एक आगे होड़ करती है ज़री।
पहले खुदा फ़िर बाद उसके आदमी कारीगरी।
किस तरफ़ से की शुरू नक्काश ने कारीगरी।
जर्रे-जर्रे पे बनाया फूल भी मलयागिरी।
देख तुमको लोचनों ने है ज़री का काम सीखा।
और तब से ही तुम्हारे अक्स के नक्काश हैं ये।
[गृहशोभा पत्रिका के लिए जबरन लिखे गए उर्दू-हिंदी भाषा के शेर]
फ़िर बेलबूटेदार कपड़ों से सजाया क्यों बदन।
जब हो चुकी थी जिस्म पर कारीगरी, ओ आफताब!
फ़िर क्यों ज़री के काम को देने आमादा हो ख़िताब।
जब हजारों बार बिंधे अरमान।
तेरी सजावट का बना सामान।
एक से बढ़ एक आगे होड़ करती है ज़री।
पहले खुदा फ़िर बाद उसके आदमी कारीगरी।
किस तरफ़ से की शुरू नक्काश ने कारीगरी।
जर्रे-जर्रे पे बनाया फूल भी मलयागिरी।
देख तुमको लोचनों ने है ज़री का काम सीखा।
और तब से ही तुम्हारे अक्स के नक्काश हैं ये।
[गृहशोभा पत्रिका के लिए जबरन लिखे गए उर्दू-हिंदी भाषा के शेर]
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
मौहब्बत का रहबर
प्यार के इज़हार का
ज़रिया मुलाकात है।
मुलाकात हो बेहतर
ज़रूरी जज़्बात हैं।
और मुँह से जज़्बात
गोया साफ़ नहीं होते।
हो मयस्सर अदायें अगर
और जुदा बदनीयत
तो समझो करीब है
मौहब्बत का रहबर।
[उर्दू-अभ्यास]
ज़रिया मुलाकात है।
मुलाकात हो बेहतर
ज़रूरी जज़्बात हैं।
और मुँह से जज़्बात
गोया साफ़ नहीं होते।
हो मयस्सर अदायें अगर
और जुदा बदनीयत
तो समझो करीब है
मौहब्बत का रहबर।
[उर्दू-अभ्यास]
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