शुक्रवार, 19 मार्च 2010

नज़र

मुल्क में रहना हो ग़र

जाँचिये खुद की नज़र

चश्मे-ग़ुरू-बाशिन्दगी

का असर, हम-कद-कसर।

________ गज़न्फर, गज़न्फर।

इस्तमाली खाना थाली

हो गया सुराख- ऐ-घर?

इधर से मैं उधर से तू

गौर फरमा, पता कर।

________ गज़न्फर, गज़न्फर।

असबाब को ही दी तवज्जो

आये नज़र कमतर ज़बर।

पीर मुंसिफ मौलवी

सबका नज़रिया बेअसर।

________ गज़न्फर, गज़न्फर।

ज़ारी...

बुधवार, 30 दिसंबर 2009

लाहोर का इकरार

लाहोर का इकरार
______ज़ज्बे ख़्वार
________ फ़रमा हो गया
जबकि बैठे रहनुमा दो मुल्क के
_____________ हो रू-ब-रू।

चैनो अमन पैगाम
______जश्ने आम
_________ तस्सवुर हो गया
तिसपे फौजें आ डटी दो मुल्क की
______________हो दू-ब-दू।

मुआफिकत-अ-रमज़ान
______ लफ्ज़-अ-अज़ान
_________ ज़िहाद हो गया
इबादत इतल्ला का ढंग, एलाने-जंग
__________ एक से थे हू-ब-हू ।

खुदा-ना-खास्ता

शहादत की अकीदत
अंजुमन में अदब से करना
लगे ना जश्ने-कुर्बानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।

अदावत की फज़ीहत
सरहदों पर जिगर से करना
लगे ना हुक्म फ़रमानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।

रफाकत की नसीहत
हिंद मकतब में तलब करना
लगे ना ज़ोर ज़िस्मानी
_____ खुदा-ना-खास्ता।

सोमवार, 23 नवंबर 2009

ईद-उल-फितर

भाइयो !
मिलकर मनाओ ईद
दिल में ना रह जाए

कसक औ' फिकर ।

ग़र ग़रीबी में

दबा हो कोई बन्दा
बाँट फ़ितरा
दिखा
उसको भी जिगर ।

पर ना जिंदा

जनावर को मार
मुर्दा खा ना बन्दे

कर परिन्दे - बेफ़िकर ।

दर और दरिया

मान सबका
मौहब्बत का —

सब बराबर, सब बराबर ।

ज़र और जोरू

है सलामत
ख़ुद की व औरों की
रख पाक अपनी भी नज़र ।

सरहद हिंद पर

मरने का ज़ज्बा पाल
कर दे दुश्मनों को

नेस्तनाबुद ओ' सिफर ।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

मरहवा-मरहवा

देख तुमको
मैं हुआ बेहोश
अब दे दवा


कह सकूँ
मैं होश आकर
मरहवा-मरहवा।


दरिया दिल

दिल तो है
दरिया हमारा
ये बताना था जरूरी।

पोत सी
दो आँख तेरी
ना रहे अब तो ये दूरी।

सोमवार, 16 नवंबर 2009

शेरो-शायिरी

ऊपर से नीचे तक करीने से सजे थे आप तो।
फ़िर बेलबूटेदार कपड़ों से सजाया क्यों बदन।

जब हो चुकी थी जिस्म पर कारीगरी, ओ आफताब!
फ़िर क्यों ज़री के काम को देने आमादा हो ख़िताब।

जब हजारों बार बिंधे अरमान।
तेरी सजावट का बना सामान।

एक से बढ़ एक आगे होड़ करती है ज़री।
पहले खुदा फ़िर बाद उसके आदमी कारीगरी।

किस तरफ़ से की शुरू नक्काश ने कारीगरी।
जर्रे-जर्रे पे बनाया फूल भी मलयागिरी।

देख तुमको लोचनों ने है ज़री का काम सीखा।
और तब से ही तुम्हारे अक्स के नक्काश हैं ये।

[गृहशोभा पत्रिका के लिए जबरन लिखे गए उर्दू-हिंदी भाषा के शेर]